शब्द-शक्ति की परिभाषा :- शब्द की शक्ति असीम है। शब्द हमारे मन, कल्पना तथा अनुभूति पर प्रभाव डालता है। प्रयोग के अनुसार शब्द का अर्थ बदल जाता है। अभीष्ट अर्थ श्रोता तक पहुंचाने की क्षमता अथवा शब्द में छिपे हुए तात्पर्य को प्रसंगानुसार स्पष्ट करने की सामर्थ्य शब्द शक्ति है
शब्द-शक्ति की उदाहरण :-
रमेश की ‘गाय’ 5 किलो दूध देती है तथा:- सुमित्रा की बहु तो निरी ‘गाय’ है। इन दोनों वाक्यों में ‘गाय’ शब्द आया है मगर अर्थ दोनों में भिन्न (एक में पशु का नाम तो दूसरे में भोला-भाला सीधा व सरल व्यक्ति) है। इस प्रकार वक्ता या लेखक के अभिष्ट का बोध कराने का गुण ही शब्द शक्ति है।
शब्द और अर्थ के इस चमत्कारिक स्वरूप को प्रकट करने वाले शब्द शक्तियां तीन प्रकार की है :-
1. अभिधा शब्द शक्ति :- शब्द कि जिस शक्ति से किसी शब्द के सबसे साधारण, लोक प्रचलित अथवा मुख्य अर्थ का बोध होता है, उसे “अभिधा शब्द शक्ति” कहते हैं।
शब्द को सुनते ही अथवा पढ़ते ही श्रोता या पाठक उसके सबसे सरल, प्रचलित अर्थ को बिना अवरोध के ग्रहण करता है, वह ,अभिधा शब्द शक्ति, कहलाती है।
अभिधा शब्द शक्ति के उदाहरण :-
- राजा दशरथ अयोध्या के राजा थे।
- गुलाब का फूल बहुत सुंदर है।
- मोहन पुस्तक पढ़ रहा है।
- गाय घास चर रही है।
उपर्युक्त सभी वाक्यों के अर्थ ग्रहण में किसी प्रकार का अवरोध नहीं है।
2. लक्षणा शब्द शक्ति :- जब किसी शब्द के मुख्यार्थ में बाधा हो या अभीष्ट अर्थ का बोध न हो तब अन्य अर्थ किसी लक्षण पर अथवा दीर्घकाल से माने जा रहे रूढ़ अर्थ पर आधारित होता है।
लक्षणा शब्द शक्ति के दो भेद इस प्रकार है :-
(i) पुलिस देख चोर चौकन्ना हो गया।
इसमें चोर द्वारा ‘चौकन्ना’ होने का अर्थ है – सजग हो जाना, सावधान हो जाना या अपने बचाव का उपाय सोच लेना। जबकि चौकन्ना का शाब्दिक अर्थ है चौ = चार, कन्ना = कान अर्थात ‘चार कान वाला’ अतः दो की जगह चार कान कहने का तात्पर्य है कानो का अधिकाधिक उपयोग करना, उनका पूरा लाभ उठाना। अतः यह अर्थ लक्षण पर आधारित हुआ। अतः यह ‘प्रयोजनवती लक्षणा’ कहलाता है।
इसी प्रकार उदाहरण :-
(ii) राजेश का पुत्र ऊँट हो गया।
इसमें ‘ऊँट’ का अर्थ है- अधिक लंबा होना। अब यह अर्थ ‘रूढ़ि’ के आधार पर लिया गया है। अतः यह ‘रूढा लक्षणा’ कहलाता है। इस प्रकार लक्षणा शब्द शक्ति में लक्षण या प्रयोजन तथा रूढ़ि द्वारा अर्थ ग्रहण किया जाता है।
अन्य उदाहरण :-
- लाला लाजपत राय पंजाब के शेर हैं।
- सारा घर मेला देखने गया।
- नरेश तो गधा है।
- वह हवा से बातें कर रहा था।
- सैनिकों ने कमर कस ली।
उदाहरणों में ‘शेर’, ‘घर’, ‘गधा’, ‘हवा’, ‘कमर कसना’ आदि लाक्षणिक अर्थ है जिनके लाक्षणिक अर्थ ही ग्रहण किए जाएंगे।
3. व्यंजना शब्द शक्ति :- जब किसी शब्द का अर्थ में अभिधा से प्रकट होता है ना लक्षणा से बल्कि कोई अन्य अर्थ ही प्रकट होता है। वह “व्यंजना शब्द शक्ति” होती है।
‘व्यंजना’ का अर्थ है विकसित करना, स्पष्ट करना, रहस्य खोलना। अतः किसी शब्द का छुपा हुआ अन्य अर्थ ज्ञात करना ही व्यंजना शब्द शक्ति कहलाती है। इस में कथन के संदर्भ में के अनुसार एक ही शब्द के अलग-अलग अर्थ प्रकट होते हैं तो कभी श्रोता या पाठक की कल्पना शक्ति कोई नया अर्थ कर लेती है।
जैसे :- “संध्या हो गई” वाक्य का अर्थ “चरवाहे के लिए घर लौटने का समय” तो ‘पुजारी के लिए पूजन वंदन का समय’ है।
‘व्यंजना’ शब्द शक्ति से प्राप्त अर्थ को दो भागों में विभक्त करते हैं :-
- शाब्दी व्यंजना
- आर्थी व्यंजना
(1) शाब्दी व्यंजना :- जब व्यंजना शब्द पर निर्भर हो, शब्द बदल देने से अर्थात पर्याय रख देने से अर्थ बदल जाता हो वहां व्यंजना होती है क्योंकि अभिष्ट अर्थ के लिए वही शब्द आवश्यक है।
जैसे :- चिरजीवो जोरी जुरै, क्यों न सनेह गंभीर। को घटि, ये वृषभानुजा, वे हलधर के बीर।।
यहां वृषभानुजा का अर्थ राधा तथा गाय हैं वही हलधर के भी दो अर्थ बलराम तथा बैल है। अतः यहां शब्द का चमत्कार जो पर्याय रख देने पर नहीं रह सकता।
शाब्दी व्यंजना का अन्य उदाहरण :-
- रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
- पानी गए न ऊबरे, मोती, मानुष, चून।।
- इसमें पानी शब्द के तीन अर्थ (चमक, सम्मान एवं जल) उसके पर्याय रख देने पर नहीं रहेंगे।
(2) आर्थी व्यंजना :-
जब शब्दार्थ की व्यंजना अर्थ पर निर्भर रहती है। उसका पर्याय रख देने पर भी अभीष्ट की पूर्ति हो जाती है वहां आर्थी व्यंजना होती है। आर्थी व्यंजना में बोलने वाले, सुनने वाले, प्रकरण, देशकाल, कंठ-स्वर आदि का बोध कराती है।
जैसे :-
- सघन कुंज, छाया सुखद, सीतल मंद समीर।
- मन ह्वै जात अजौं वहै, वा यमुना के तीर।।
इसमें गोपिका कृष्ण के साथ बिताए यमुना तट की लीलाओं को याद कर रही है। जो बातें वह कहना चाहती है, ह्रदय के जिन भावों का प्रभाव वह व्यक्त करना चाहती है वह समस्त भाव संसार यहां व्यक्त हो गया है।
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