वाच्य की परिभाषा :- क्रिया का वह रूप वाच्य कहलाता है जिससे मालूम हो कि वाक्य में प्रधानता किसकी है – कर्ता कि, कर्म की या भाव कि। इससे क्रिया का उद्देश्य ज्ञात होता है अंग्रेजी में वाक्य को ‘Voice’ कहते हैं।
वाच्य तीन प्रकार के होते हैं :-
- कर्तृ वाक्य
- कर्म वाच्य
- भाव वाच्य
1. कर्तृ वाच्य :- जब वाक्य में प्रयुक्त क्रिया का सीधा और प्रधान संबंध कर्ता से होता है उसे कर्तृ वाच्य कहते हैं। इसमें क्रिया के लिंग, वचन कर्ता के अनुसार प्रयुक्त होते हैं। अर्थात क्रिया का प्रधान विषय कर्ता है और क्रिया का प्रयोग कर्ता के अनुसार होगा।
जैसे :-
- मैं पुस्तक पढ़ता हूं।
- विमला ने मेहंदी लगाई।
- तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना की।
2. कर्मवाच्य :- जब क्रिया का संबंध वाक्य में प्रयुक्त कर्म से होता है, उसे कर्मवाच्य कहते हैं। अतः क्रिया के लिंग, वचन कर्ता के अनुसार न होकर कर्म के अनुसार होते हैं। कर्मवाच्य सदैव सकर्मक क्रिया का ही होता है क्योंकि इसमें कर्म की प्रधानता होती है।
जैसे :-
- सीता ने दूध पीया।
- सीता ने पत्र लिखा।
- मनोज ने मिठाई खाई।
- राम ने चाय पी।
इन वाक्यों में ‘पीया’ और ‘लिखा’ क्रिया का एकवचन पुल्लिंग रूप दूध व पत्र अर्थात कर्म के अनुसार आया है। इसी प्रकार ‘खा’ व ‘पी’ एक वचन पुर्लिंग क्रिया ‘मिठाई’ व ‘चाय’ कर्म पर आधारित है।
3. भाव वाच्य :- क्रिया के जिस रुप से यह ज्ञात होता है कि कार्य का प्रमुख विषय भाव है, उसे भाव वाच्य कहते हैं। यहां कर्ता या कर्म कि नहीं क्रिया के अर्थ की प्रधानता होती है। इसमें अकर्मक क्रिया ही प्रयुक्त होती है। लिंग, वचन न कर्ता के अनुसार होते हैं ना कर्म के अनुसार बल्कि सदैव एकवचन, पुल्लिंग एवं अन्य पुरुष में होते हैं।
जैसे :-
- मुझसे सवेरे उठा नहीं जाता।
- सीता से मिठाई नहीं खाई जाती।
- लड़कों द्वारा खो-खो खेला जायेगा। आदि ।
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